Monday, August 1, 2022

चुनौतियों से भरी 70 साल की आजादी

Posted On: 15 AUG 2017 10:07AM

स्वतंत्रता के 70 वर्ष//विशेष लेख- स्वतंत्रता दिवस 2017//*अनिल चमड़िया

अनिल चमड़िया एक जानेमाने जन पत्रकार हैं। जन सरोकारों और जन मीडिया से जुड़े हुए भी हैं। संवाददाताओं से विज्ञापन एकत्र करवाने जैसे मामलों को बुलंदी से उठाने वाले अनिल चमड़िया पंजाब में भी आते रहे हैं। सेमिनारों में भी शामिल होते रहे हैं। उनकी बात में ज़ोरदार तर्क होता है। उनका यह आलेख कुछ पुराना है। यह 15 अगस्त 2017 का लिखा हुआ है लेकिन इसमें उठाई गई बातें आज भी प्रासंगिक हैं। पढ़िए पूरा लेख:रेक्टर कथूरिया 

नई दिल्ली: 15 अगस्त 2017: (अनिल चमड़िया//पीआईबी)::

ब्रिटिश हुकूमत का मतलब क्या था ये उस समय के आंदोलन के इतिहास के एक अंश से समझा जा सकता है। महात्मा गांधी ने यंग इंडिया में लिखा“ हमें अनुभव होता हो या न होता हो, कुछ दिन से हम पर एक प्रकार का फौजी शासन हो रहा है। फौजों का शासन आखिर है क्या? यही कि सैनिक अफसर की मर्जी ही कानून बन जाती है और वह चाहे साधारण कानून को ताक पर रखकर विशेष आज्ञायें लाद देता है और जनता बेचारी में उनके विरोध करने का दम नहीं होता, पर मैं आशा करता हूं, वे दिन जाते रहे कि अंग्रेज शासकों के फरमानों के आगे हम चुपचाप सिर झुका दें  ”

70 वर्ष पहले ब्रिटिश साम्राज्य में भारतीय जनता के हालात को समझने और उसके खिलाफ संघर्ष को याद करना किसी स्कूली पाठ्यक्रम को पढ़कर परीक्षा में पास करने की एक तकनीकी प्रक्रिया नहीं है। उसे महसूस करना ही पाठ्यक्रम के उद्देश्यों को पूरा करता है। पूरी दुनिया में मानव सभ्यता के भीतर उन तमाम तरह की बुराईयों के खिलाफ संघर्ष होता रहा है जब इंसानी हक हकूक को शासक होने के नाते कोई अपने मातहत करने की कोशिश करता है।उन संघर्षों को नई पीढ़ी को महसूस करना होता है ताकि वह इंसानी हक हकूक को लेकर बराबर संवेदनशील रहे और अपने हासिल किये अधिकारों के प्रति चौकन्ना रहें। यह सिलसिला पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है। 70 वर्षों की आजादी के मूल्यांकन की यह कसौटी हो सकती कि मौजूदा पीढ़ी को संघर्ष की वह विरासत के रूप में मिली है।

नई पीढ़ी के सामने दस्तावेज के रूप में एक संविधान है। अंग्रेजों के शासन को समाप्त करने के लिए सब लोग एकमत हुए तो इस संकल्प के साथ कि भविष्य को हम अपने तरीके से मिल जुलकर संचालित करेंगे। इसीलिए सत्ता हस्तानांतरण के बाद हमने अपने संविधान में पहला वाक्य यही लिखा कि हम भारत के लोग अब बराबरी,सम्मान और भाईचारे वाला समाज बनाने के लिए यात्रा शुरु कर रहे हैं।उस समय की हमारी स्थिति का आकलन डॉ. अम्बेडकर के इस कथन से किया जा सकता है: ‘‘26, जनवरी 1950 को हमलोग विसंगति से भरे हुए जीवन में प्रवेश करने वाले हैं। राजनीतिक दृष्टि से अपने पास समता रहेगी( यानी अपने प्रतिनिधि चुनने के लिए एक वोट देने का अधिकार रहेगा),पर सामाजिक और आर्थिक जीवन में विषमता रहेगी। आगे कहते है कि ऐसी विसंगति भरा जीवन हम लोग कब तक जिएंगे? अपने सामाजिक व आर्थिक जीवन में हम कब तक समता को नकारेंगे? यदि लंबे समय तक हम उसे नकारते रहें, तो अपने राजनीतिक लोकतंत्र को खतरे में डाल लेंगे। इस विसंगति को यथाशीघ्र दूर करना चाहिए। वे चेतावनी देते हैं कि नहीं तो विषमता के शिकार लोग उसमें सुरंग लगा देंगे।’

पूरी दुनिया में कई देशों को ब्रिटिश साम्राज्य से उस समय आजादी मिली। सभी देश अपने अपने तरीके से उस आजादी का मूल्यांकन कर रहे हैं। हमारे देश में भी ये मूल्यांकन किया जा रहा है। 70 वर्षों में हमने अपने संकल्प को किस हद तक पूरा किया है।लेकिन उससे पहले हमें ये समझना होगा कि आखिर संविधान में जो संकल्प लिया गय़ा उसके सामने किस तरह की चुनौती रही है।26 नवम्बर 1949 को डॉ. अम्बेडकर संविधान सभा के समक्ष कहते हैं: ‘‘सामाजिक व मानस शास्त्रीय अर्थ में हम एक राष्ट्र नहीं हैं, यह जितनी जल्दी हमारे ध्यान में आ जाएगा, हमारे लिए उतना हितकर होगा..जातियां सामाजिक जीवन में परस्पर द्वेष और विलगाव का निर्माण करती हैं। इसलिए जाति राष्ट्र विरोधी होती है। लेकिन हमें एक राष्ट्र बनना हो तो इस सारी कठिनाइयों पर जीत हासिल करनी होगी; क्योंकि जब एक राष्ट्र होगा, तभी बंधुता की भावना आकार ले सकती है। बंधुता यानी भाईचारे के बिना बराबरी व स्वतंत्रता केवल ऊपरी दिखावा मात्र रहेगी।’

70 वर्षों तक की यह यात्रा हमें सभी मोर्चे पर एक जैसी राय बनाने से रोकती है। हम ये दावा नहीं कर सकते हैं कि हमने अपने संकल्प पूरे कर लिये हैं।यानी सत्ता हस्तानांतरण के बाद पुराने ढांचे की विकृतियां व प्रवृतियां बनी हुई है। दरअसल उपनिवेशवाद के दौर से निकले देशों के सामने तीन तरह की चुनौती रही है। एक चुनौती तो उस ढांचे के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक ढांचे के अवेशषों को खत्म करने की जिस ढांचे को चुनौती देकर आजाद होने का दावा किया जाता है। दूसरी चुनौती उस सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक ढांचे के अवशेषों को समाप्त करने की जिनकी वजह से हमें गुलामी का शिकार होना पड़ा। और तीसरी चुनौती एक नये समाज की परिकल्पना कर उसे पूरा करने के लिए नीतियां बनाना और उनके आधार पर कार्यक्रमों को निर्धारित करना। हमारे देश में तीनों स्तरों पर संघर्ष की प्रक्रिया विभिन्न स्तरों पर चलती रही है। सरकार अपने स्तर पर कोशिशों को अंजाम देती रही है तो दूसरी तरफ विविधता वाले समाज का हर हिस्सा अपने अपने स्तर पर उन चुनौतियों से जूझता रहा है। डा. अम्बेडकर ने इसे ही कठिनाईयों पर जीत के रूप में व्यक्त किया है।

दरअसल हम जब 70 वर्ष की आजादी की बात कर रहे हैं तो इसका मकसद इस बात पर जोर देना भी है कि हमें अपनी चुनौतियों का मुकाबला करने की गति को तीव्र करना चाहिए। कोई वरिष्ठ नागरिक यदि कहते हुए हमारे आसपास मिलता है कि हमने सचमुच आजादी की सांसें लेकर अपने जीवन की यह यात्रा पूरी की है तो समझना चाहिए कि सचमुच हमारी आजादी दुनिया के दूसरे देशों के सामने एक मिसाल के रूप में स्थापित है। (PIB)

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*लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं।

वीएल/डीएस/एसएस/एजे-139

Thursday, May 7, 2015

आह्वान / अशफ़ाकउल्ला ख़ां

परवा नहीं कुछ दम की, ग़म की नहीं, मातम की,
है जान हथेली पर, एक दम में गंवा देंगे।

अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जन्म उत्तर प्रदेश के शहीदगढ शाहजहाँपुर में रेलवे स्टेशन के पास स्थित कदनखैल जलालनगर मुहल्ले में 22 अक्टूबर 1900 को हुआ था। उनके पिता का नाम मोहम्मद शफीक उल्ला ख़ाँ था। उनकी माँ मजहूरुन्निशाँ बेगम बला की खूबसूरत महिलाओं में गिनी जाती थीं। अशफ़ाक़ ने स्वयं अपनी डायरी में लिखा है कि जहाँ एक ओर उनके बाप-दादों के खानदान में एक भी ग्रेजुएट होने तक की तालीम न पा सका वहीं दूसरी ओर उनकी ननिहाल में सभी लोग उच्च शिक्षित थे। उनमें से कई तो डिप्टी कलेक्टर व एस० जे० एम० (सब जुडीशियल मैजिस्ट्रेट) के ओहदों पर मुलाजिम भी रह चुके थे। सन 1857  के गदर में उन लोगों (उनके ननिहाल वालों) ने जब हिन्दुस्तान का साथ नहीं दिया तो जनता ने गुस्से में आकर उनकी आलीशान कोठी को आग के हवाले कर दिया था। वह कोठी आज भी पूरे शहर में जली कोठी के नाम से मशहूर है। बहरहाल अशफ़ाक़ ने अपनी कुरबानी देकर ननिहाल वालों के नाम पर लगे उस बदनुमा दाग को हमेशा - हमेशा के लिये धो डाला।
अशफ़ाक़ भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। उन्होंने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। ब्रिटिश शासन ने उनके ऊपर अभियोग चलाया और 19 दिसम्बर सन 1927 को उन्हें फैजाबाद जेल में फाँसी पर लटका कर मार दिया गया। राम प्रसाद बिस्मिल की भाँति अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ भी उर्दू भाषा के बेहतरीन शायर थे। उनका उर्दू तखल्लुस, जिसे हिन्दी में उपनाम कहते हैं, हसरत था। उर्दू के अतिरिक्त वे हिन्दी व अँग्रेजी में लेख एवं कवितायें भी लिखा करते थे। उनका पूरा नाम अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ वारसी हसरत था।
आह्वान अशफ़ाकउल्ला ख़ां का एक यादगारी कलाम है। 
कस ली है कमर अब तो, कुछ करके दिखाएंगे,
आज़ाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे।

हटने के नहीं पीछे, डरकर कभी जुल्मों से,
तुम हाथ उठाओगे, हम पैर बढ़ा देंगे।

बेशस्त्र नहीं हैं हम, बल है हमें चरख़े का,
चरख़े से ज़मीं को हम, ता चर्ख़ गुंजा देंगे।

परवा नहीं कुछ दम की, ग़म की नहीं, मातम की,
है जान हथेली पर, एक दम में गंवा देंगे।

उफ़ तक भी जुबां से हम हरगिज़ न निकालेंगे,
तलवार उठाओ तुम, हम सर को झुका देंगे।

सीखा है नया हमने लड़ने का यह तरीका,
चलवाओ गन मशीनें, हम सीना अड़ा देंगे।

दिलवाओ हमें फांसी, ऐलान से कहते हैं,
ख़ूं से ही हम शहीदों के, फ़ौज बना देंगे।

मुसाफ़िर जो अंडमान के, तूने बनाए, ज़ालिम,
आज़ाद ही होने पर, हम उनको बुला लेंगे।

Wednesday, April 8, 2015

हम मज़दूर साला ! //कविता//Manish Shobha Patel

......पर यहाँ तो हर गली मौहल्ले में चोर बैठे हैं 
थकावट में दो घड़ी नींद आ गयी। यह तस्वीर लुधियाना में ही एक थाने के बाहर क्लिक की गयी थी।
हम मज़दूर साला !-----एक कविता है जो मज़दूर की ज़िंदगी के सच और चुनावी खेलों की हकीकत को बहुत ही सादगी से ब्यान करती है। यह रचना उनके एफ बी प्रोफाईल से साभार ली गई है। मनीष शोभा पटेल की यह रचना स्पष्ट संकेत भी देती है कि मूलभूत परिवर्तन के बिना एक मज़दूर के लिए दिल्ली में रह कर भी दिल्ली दूर रहेगी। आपको यह रचना कैसी लगी अवश्य बताएं। --रेक्टर कथूरिया
दिल्ली में केजरीवाल जीत गये हैं
खुश हैं आप ......
AAP तो खुश ही होगा ना
हमे क्या मिलेगा साहब....!!

हम रोज़ के 100 रुपये कमाते हैं
और चार लोग उसमे खाते हैं
अगर उसमे कुछ बचता है तो
थोडी दारू पी जाते हैं
बच्चों का स्कूल और शिक्षा तो दूर रही साहेब
शायर मनीष शोभा पटेल
हम उनका कपडा तक नहीं जुटा पाते हैं
अगर बीमार ही जाये कोई तो
उधार मांग कर अपना घर चलते हैं
ये नेता लोग तो रोज़ आते हैं
हाँथ फ़ैलाते हैं खूब बतियाते हैं
वोट भीख में मांग ले जाते हैं
कभी सीला अम्मा तो किरण दीदी
तो कभी हमारे कजरी भैया
और हम मज़दूर साला
एक ही गड्ढ़े को बार बार भरे जाते हैं
अरे साहेब हम तो आये थे यहाँ कि
दिल्ली भी हम जैसे मज़दूरों को मंज़ूर कर लेगी
पर यहाँ तो हर गली मौहल्ले में चोर बैठे हैं
बिना पैसे के तो कोई जूता भी न मारे
संसद से सड़क तक सभी चोर हैं
बस फर्क इतना है कि संसद में रहने वाले चोर
गांधी का खादी पहनकर टीवी पर जनता को
अंगूठा दिखाकर कहते हैं
दाग अच्छे हैं
आप के कपडे और बातो को देखकर लग रहा है
आप भी हमारी बिरादरी से ही आते हैं
कुछ लोग आते हैं साथ कैमरा और माइक लाते हैं
फ़ोटो खीच हमारी अखबार में छपाते हैं
हम लोगों की रोति शक्ले बेच बेच
वो बोहोत बड़े फोटोग्राफर बन जाते हैं
और हम साला मज़दूर
इन्ही सड़कों पर धुल उड़ाते रह जाते हैं
खैर , अगर हमारी बातों से दुःख लगा हो तो
माफ़ करियेगा हमे
क्या करें साहेब
किसी दूसरे गृह पर होते तो
ये तसल्ली तो हो जाती कि
दिल्ली अभी दूर है।

पोस्ट स्क्रिप्ट:
यहाँ मज़दूर को मरने की जल्दी यूँ भी है;
कि ज़िंदगी की कश्मकश में कफ़न महंगा ना हो जाए।

Tuesday, September 2, 2014

नितिन गडकरी ने मनरेगा में किए अभूतपूर्व बदलाव

02-सितम्बर-2014 19:44 IST
श्रमिकों में से 50 फीसदी को नहरों के काम में लगाया जाएगा
केंद्रीय खाद्य प्रसंस्‍करण मंत्री श्रीमती हरसिमरत कौर बादल 02 सितंबर, 2014 को नई दिल्‍ली में केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग और शिपिंग मंत्री श्री नितिन गडकरी से मुलाकात करते हुए। (पसूका-हिंदी इकाई)
The Union Minister for Food Processing Industries, Smt. Harsimrat Kaur Badal meeting the Union Minister for Road Transport & Highways and Shipping, Shri Nitin Gadkari, in New Delhi on September 02, 2014.
गंभीर सूखे और सूखे जैसे हालात या अभाव से निपटने के लिए, केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री नितिन गडकरी ने आदेश दिया है कि जिला स्तर पर एजेंसीज द्वारा लिए जाने वाले श्रमिकों में से 50 फीसदी को चेक डेम संरक्षण, पारंपरिक जल स्रोतों, छोटे तालाबों और नहरों से गाद निकालने के काम में लगाया जाएगा। यह निर्णय संदस सदस्यों और स्थानीय जन प्रतिनिधियों द्वारा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) को भ्रष्टाचार का गढ़ कहे जाने के बाद लिया गया। मनरेगा के बारे में कहा जाने लगा था कि इस ग्रामीण रोजगार योजना से किसी प्रकार की उत्पादक संपत्ति का निर्माण नहीं हो रहा है।

एक प्रेस विज्ञप्ति‍ के जरिए मंत्री ने स्पष्ट किया है कि इस प्रकार के कार्यों के लिए दिहाड़ी श्रमिकों और मशीनरी के संयोजन की आवश्यक होती है। इसमें कुशल घटकों की भागीदारी 49 फीसदी तक बढ़ गई है। कुशल भागीदारी को 40 प्रतिशत से बढ़ाकर 49 प्रतिशत किए जाने का प्रावधान राज्यों को अधिकार संपन्न बनाता है। यदि वे चाहें तो चेक डेम, छोटे सिंचाई तालाबों का काम मशीन से कर सकते हैं और बाकी 51फीसदी का भुगतान वो दिहाड़ी मजदूरी के रुप में कर सकते है।

मंत्री ने आगे कहा कि यदि राज्य कुशल भाग को 40 फीसदी तक सीमित रखना चाहते हैं तो वे ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं। संसद सदस्यों और जल संरक्षण से जुड़े राजेंद्र सिंह और पोपट राव पंवार जैसे गैर सरकारी संगठनों के कार्यकर्ताओं ने इन बदलावों का स्वागत किया है। उनका कहना है कि मनरेगा में इस प्रकार के बदलावों के जरिए जल संरक्षण के लिए ढ़ांचा विकसित होगा जो सूखे और जल संकट से निपटने में मदद करेगा।

मंत्री ने ग्रामीण विकास मंत्रालय को निर्देश दिया है कि राज्य सरकारों को किए जाने वाले सभी कोष हस्तांत्रण ई-पेमेंट प्लेटफॉर्म के जरिए समय से किए जाएं जिससे कि मजदूरी के भुगतान में एक सप्ताह से अधिक की देरी नहीं हो। (PIB)

विजयलक्ष्मी कासोटिया/एएम/एनए-3473

Monday, March 31, 2014

यह ढांचा आम लोगों को गुलाम बना कर रखने वाला-फूलका

Sun, Mar 30, 2014 at 10:09 PM
राजनीतिज्ञ लोग गुंडे इसी लिए पालते हैं ?

“आप” प्रत्याशी एडवोकेट फूल्का की शेरपुर में विशाल जनसभा
लुधियाना30 मार्च 2014: (जन स्क्रीन ब्यूरो):
हमारे लीडरों ने सारा सरकारी ढांचा खराब किया हुआ है और लीडरों की सिफारिश या परची के बगैर आम नागरिकों का किसी भी सरकारी विभाग में कोई भी काम नही होता | इस तरह इन लीडरों के द्धारा लोगों को अपने पीछे-पीछे घूमने के लिए मजबूर किया जाता है और हम इन लोगों को, इस तरह के राजनीतिज्ञों की गुलामी से आजाद करवाना चाहते हैं। इन बातों का उल्लेख आज आम आदमी पार्टी (आप) के उम्मीदवार एडवोकेट हरविंदर सिंह फूल्का ने 100 फुटी रोड, शेरपुर में अयोजित विशाल जनसभा में किया। हजारों की संख्या में उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि गुलाम बना कर रखने वाले इस सरकारी ढांचे में ईमानदार अधिकारिओं को किनारे लगा दिया जाता है और बेईमान अधिकारिओं को ऊँचे पदों पर बैठा किया जाता है, ताकि  वे खुद भी पैसे कमाएं, उन्हें भी दें और उनकी चापलूसी भी करें। उन्होंने कहा की “आप“ सरकारी ढांचे को पुनः बहाल करेगी। उन्होंने कहा कि किसी भी सरकार के तीन मुख्य कर्तव्य होते हैं–सरकारी स्कूलों  के स्तर को ऊँचा करना, सरकारी स्वास्थ केन्द्रों की सेवाओं के स्तर को ऊँचा करना और आम लोगों को सुरक्षा प्रदान करना पर इन तीनों कर्तव्यों से सरकार अपना मुख मोड़ रही है। उन्होंने कहा कि  सरकारी स्कूलों के बच्चे पढाई में पीछे रहते जा रहे हैं, गरीब अपना इलाज नही करा सकते और पुलिस लोगों को छोड़ के राजनीतिज्ञों की सुरक्षा में लगी हुई है। उन्होंने कहा की राजनीतिज्ञ गुंडे इस लिए पालते हैं, भ्रष्टाचार के द्धारा पैसे इस लिए कमाते हैं क्यों कि वे सोचते हैं कि चुनाव गुंडागर्दी और पैसे के सहारे ही जीता जा सकता हैं, जबकि उन्हें यह ख्याल नही आता कि चुनाव लोगों के काम करके और लोगों की सेवा करके भी जीता जा सकता है। उन्होंने कहा की इस बार गलत तौर-तरीके अपनाने वाले इन भ्रष्ट राजनीतिज्ञों को चुनावों में लोग सबक सिखा कर यह बात साबित कर देंगे। श्री फूल्का ने बहुत बड़ी संख्या में पहुंचे मजदूर वर्ग से सम्बन्धी कानूनों को भी प्रभावशाली तरीके से लागु करवाने का भरोसा दिया। इस अवसर पर समूह कार्यकर्ताओं के आलावा केप्टन गुरविंदर सिंह कंग, कर्नल जे. एस. गिल, एडवोकेट प्रभ सहाय फूल्का और कई अन्य प्रमुख लोग भी उपस्थित थे। 

Wednesday, February 12, 2014

क्या इस देश में अलग अलग समुदाय के लिए अलग अलग कानून हैं?

मुसलमानों को सबक सीखाने के लिए SP ने दिया भीड़ को 2 घंटे का वक़त 
मुज़फ्फर नगर में एक कवाल गाँव है . ये वो गाँव है जहां से मुज़फ्फर नगर दंगा शुरू हुआ था . आपको अखबारों और टीवी पर बताया गया था कि कवाल में एक मुसलमान लड़के शाहनवाज़ ने एक हिंदू लड़की के साथ छेड़खानी करी जिसके बाद उसके भाई मुसलमान लड़के को समझाने गए तो हिंदू लड़कों की हत्या कर दी गयी. 
लेकिन सच्ची बात कुछ और ही है 
शाहनवाज़ चौबीस साल का एक खूबसूरत नौजवान था . शाहनावाज़ कुल आठ भाई थे . ये सारे भाई चेन्नई के सेन्ट्रल रेलवे स्टेशन के पास पेरियामेट में रह कर लेडीज़ सूटों की फेरी लगाते थे . सारे भाई कई महीने बाद अपने गाँव आये थे . 

अपनी हत्या के एक दिन पहले यानी छब्बीस अगस्त को शाहनवाज़ ने अपने सातों भाइयों को मुज़फ्फर नागर से चेन्नई जाने वाली ट्रेन में बैठा दिया और खुद एक दो दिन के बाद चेन्नई आने के लिए कहा . 

दोपहर को शाहनवाज़ किसी काम से बाज़ार की तरफ गया वहाँ उसकी मोटर साईकिल की टक्कर गौरव की साईकिल से हो गयी . दोनों में कहा सुनी हुई . शाह्नावाज़ अपने घर आ गया .
करीब डेढ़ बजे शाहनवाज़ नमाज़ पढ़ने मस्जिद जाने के लिए निकला . सड़क पर सचिन तीन मोटर साइकिलों पर अपने पिता और मामाओं और मामा के बेटे सचिन के साथ खड़ा था . 
इन लोगों ने शाहनवाज़ को गुप्ती चाकू और पंच से हमला कर दिया . शाहनवाज़ सड़क पर चिल्लाते हुए गिर गया . 

हत्यारे दो मोटर साइकिलों पर नगली गाँव की तरफ भाग खडे हुए . लेकिन सचिन और गौरव मलिकपुर की तरफ भागे . भीड़ ने सचिन और गौरव को पकड़ लिया और पीट पीट कर मार डाला .भीड़ को यह नहीं पता था कि हमलावर हिंदू थे या मुसलमान . लेकिन गाँव में घुस कर गाँव के लड़के को मारने पर क्रोधित होकर भीड़ ने कातिलों को मार डाला .

यह घटना दोपहर ढाई बजे की है . कुछ ही देर में एसपी मंजू सैनी और कलेक्टर वहाँ पहुँच गए . एस पी मंजू सैनी ने जमा भीड़ के सामने कहा कि दो घंटे का समय देती हूँ इन मुसलमानों को सबक सिखा दो . 

गाँव के पूर्व प्रधान विक्रम सैनी की अगुआई में पुलिस की मौजूदगी में मुसलमानों की दुकानों के शटर तोड़ डाले गए . फज़ल , मुन्ना , अफज़ल और अन्य लोगों की दुकानें लूट ली गयी . सरफराज़ की कार जला दी गयी . और लोगों को घरों में घुस कर पीटा गया . 

इन हमलावरों का नेता विक्रम सैनी अब जेल में है इस पर रासुका लगा दिया गया है . 

एसपी मंजिल सैनी का ट्रांसफर भी इसी वजह से किया गया था . क्योंकि उसने अपनी मौजूदगी में मुसलमानों पर हमले करवाये थे . जबकि भाजपा ने झूठा प्रचार किया कि मुसलमानों को गिरफ्तार करने के कारण एस पी और कलेक्टर को आज़म खान ने हटवा दिया था . 

पुलिस ने आनन् फानन में थोक में मुसलमानों को हवालात में ठूंस दिया .लेकिन शाहनवाज़ के एक भी हत्यारे को नहीं पकड़ा .

साढ़े चार बजे गौरव के पिता ने एफआईआर करवाई उसमे किसी लड़की के साथ छेड़खानी का कोई ज़िक्र नहीं था .उसमे भी साईकिल और मोटर साईकिल की टक्कर के कारण झगडे की बात ही कही गयी . 

दैनिक भास्कर और एन डी टी वी को अपने इंटरव्यू में गौरव की बहन ने स्वीकार भी किया कि उसे कभी शाहनवाज़ ने परेशान नहीं किया था . वह किसी शाहनवाज़ को नहीं जानती . उसने शाहनवाज़ को कभी देखा तक नहीं . 

लेकिन भाजपा नेताओं ने ज़बरदस्ती प्रचार किया कि यह झगड़ा गौरव की बहन के साथ छेड़खानी के कारण हुआ . 

शाहनवाज़ के दो भाइयों का नाम भी एफ आई आर में लिखवा दिया गया . जबकि सच यह है कि ये सातों भाई चेन्नई जाने वाली देहरादून एक्सप्रेस में बैठे हुए थे . यह ट्रेन हर सोमवार को मुज़फ्फर नगर से चलती है और छब्बीस अगस्त को सोमवार ही था . ,मेरे पास इन सातों भाइयों के ट्रेन की टिकिट मौजूद है .

इन सातों भाइयों को रस्ते में खबर मिली कि गाँव में आपके भाई शाहनवाज़ को जाटों ने मार दिया है . ये भाई बल्लारशाह स्टेशन पर उतरे और वापिस आने वाली ट्रेन में बैठ गए . मेरे पास इनकी वापिसी के भी सातों ट्रेन के टिकिट मौजूद हैं .

अगले दिन सचिन और गौरव का अंतिम संस्कार करने के बाद . पीएसी की मौजूदगी में कवाल गाँव की मुस्लिम बस्ती पर जाटों ने कहर बरपा किया . घरों के दरवाजे तोड़ डाले गए . सामान लूट लिया , मस्जिद का सारा सामान , पंखे इन्वर्टर , लूट कर ले गए . पथराव किया . पीएसी ने मुसलमानों की तरफ पूरे समय बंदूक ताने रखीं ताकि वे अपने सामान की रक्षा न कर सकें . 

गौरव के पिता ने एफ आई आर में जिन मुसलमानों के नाम लिखवाए उन्हें बेक़सूर होते हुए भी डर के मारे घर वालों ने पुलिस को सौंप दिया . 

जांच अधिकारी सम्पूर्ण तिवारी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि यह सच है कि पहले शाहनवाज़ की हत्या करी गयी और फिर भीड़ ने सचिन और गौरव को मार डाला . 

शाहनवाज़ की हत्या की जो एफ आई आर हुई उस पर पुलिस ने आज तक कोई कार्यवाही नहीं करी . 
जैसे की शहनावाज की हत्या ही ना हुई हो .

जबकि सच तो यह है कि इन हत्यारों ने निर्दोष शाहनवाज़ को गाँव में आ कर हमला कर के मारा . और उस दौरान भीड़ के हाथ पड कर इनमे से दो हत्यारे मारे गए . 

लेकिन आज तक शाहनवाज़ के हत्यारे खुले आम मंचों पर सम्मानित किये जा रहे हैं . 

शाहनवाज़ के पिता मुलायम सिंह यादव से भी मिल कर आये लेकिन उन्होंने कोई कार्यवाही नहीं करी 

क्या इस देश में अलग अलग समुदाय के लिए अलग अलग कानून हम स्वीकार कर सकते हैं . 

याद रखिये अगर आप देश के एक भी नागरिक के साथ भेदभाव स्वीकार करते हैं तो फिर आप सभी के लिए भेदभाव को एक नीति के रूप में स्वीकार कर रहे हैं . 

हम इस मामले को सुप्रीम कोर्ट लेकर जायेंगे .

शाहनवाज़ निर्दोष था . उस के चरित्र पर लगाए हुए फर्ज़ी इलज़ाम का पर्दाफाश किया जाएगा . जेलों में बंद बेकसूरों को ज़मानत दिलवाई जायेगी और शाहनवाज़ के कसूरवारों की गिरफ्तारी की कार्यवाही के लिए सुप्रीम कोर्ट जाया जाएगा. (दन्तेवाड़ा वाणी से साभार) 

Sunday, February 9, 2014

मेरे शरीर में पत्थर भरने से नक्सलवाद समाप्त हो जाएगा क्या ?

सोनी सोरी ने प्रेस कांफ्रेंस में पूछे दिल हिला देने वाले कई सवाल 
Himanshu Kumar
आज सोनी सोरी और लिंगा कोडोपी की प्रेस कांफ्रेंस हुई . सोनी सोरी ने पूछा कि मुझे नग्न कर,मुझे बिजली के झटके दे कर , मेरे शरीर में पत्थर भरने से नक्सलवाद समाप्त हो जाएगा क्या ?

सोनी ने पूछा कि मेरे साथ ये सब करने वाले को इस देश के राष्ट्रपति ने पुरस्कार क्यों दिया ?

सोनी ने कहा कि मैं छत्तीसगढ़ वापिस जाऊंगी . छत्तीसगढ़ सरकार मेरी ह्त्या की कोशिश कर सकती है . सोनी ने कहा कि मैं चाहती हूँ कि सरकार मेरा मुकाबला ज़रूर करे . मैं सरकार को ये मौका देती हूँ .
ये लड़ाई बराबरी की तब होगी जब सरकार मुझे जान से ना मारे .

लिंगा कोडोपी ने कहा कि मैंने पुलिस की ज्यादतियां उजागर करी तो पुलिस ने मुझे फर्ज़ी मामलों में फंसा दिया और थाने में मेरी गुदा में मिर्चें भरी गयी . 

लिंगा कोडोपी ने पूछा कि इस देश में आदिवासी पत्रकार होना अपराध क्यों है ?

अरुंधती राय ने कहा कि हमें पूछना चाहिए कि आखिर आदिवासी इलाकों में ये लड़ाई किस के लिए चल रही है . सरकार से हमें पूछना चाहिए कि आपने आदिवासी इलाकों की ज़मीनों को किसे देने के समझौते किये हैं उन्हें जनता के सामने उजागर कीजिये . अरुंधती ने कहा कि निर्भया के लिए हमने फास्ट ट्रेक कोर्ट बनाया लेकिन सोनी सोरी के लिए हमारे पास सुपर स्लो कोर्ट है जो उसके शरीर से निकाले हुए पत्थर मिलने के बाद दो साल बाद उसे सिर्फ ज़मानत देता है .

प्रशांत भूषण ने कहा कि पुलिस द्वारा निर्दोषों को फर्ज़ी मामलों में फंसाया जाना इस देश की एक बड़ी समस्या है . देश में अशांति का ये एक बड़ा कारण है .

विस्तृत रिपोर्ट कल तक .