Wednesday, April 8, 2015

हम मज़दूर साला ! //कविता//Manish Shobha Patel

......पर यहाँ तो हर गली मौहल्ले में चोर बैठे हैं 
थकावट में दो घड़ी नींद आ गयी। यह तस्वीर लुधियाना में ही एक थाने के बाहर क्लिक की गयी थी।
हम मज़दूर साला !-----एक कविता है जो मज़दूर की ज़िंदगी के सच और चुनावी खेलों की हकीकत को बहुत ही सादगी से ब्यान करती है। यह रचना उनके एफ बी प्रोफाईल से साभार ली गई है। मनीष शोभा पटेल की यह रचना स्पष्ट संकेत भी देती है कि मूलभूत परिवर्तन के बिना एक मज़दूर के लिए दिल्ली में रह कर भी दिल्ली दूर रहेगी। आपको यह रचना कैसी लगी अवश्य बताएं। --रेक्टर कथूरिया
दिल्ली में केजरीवाल जीत गये हैं
खुश हैं आप ......
AAP तो खुश ही होगा ना
हमे क्या मिलेगा साहब....!!

हम रोज़ के 100 रुपये कमाते हैं
और चार लोग उसमे खाते हैं
अगर उसमे कुछ बचता है तो
थोडी दारू पी जाते हैं
बच्चों का स्कूल और शिक्षा तो दूर रही साहेब
शायर मनीष शोभा पटेल
हम उनका कपडा तक नहीं जुटा पाते हैं
अगर बीमार ही जाये कोई तो
उधार मांग कर अपना घर चलते हैं
ये नेता लोग तो रोज़ आते हैं
हाँथ फ़ैलाते हैं खूब बतियाते हैं
वोट भीख में मांग ले जाते हैं
कभी सीला अम्मा तो किरण दीदी
तो कभी हमारे कजरी भैया
और हम मज़दूर साला
एक ही गड्ढ़े को बार बार भरे जाते हैं
अरे साहेब हम तो आये थे यहाँ कि
दिल्ली भी हम जैसे मज़दूरों को मंज़ूर कर लेगी
पर यहाँ तो हर गली मौहल्ले में चोर बैठे हैं
बिना पैसे के तो कोई जूता भी न मारे
संसद से सड़क तक सभी चोर हैं
बस फर्क इतना है कि संसद में रहने वाले चोर
गांधी का खादी पहनकर टीवी पर जनता को
अंगूठा दिखाकर कहते हैं
दाग अच्छे हैं
आप के कपडे और बातो को देखकर लग रहा है
आप भी हमारी बिरादरी से ही आते हैं
कुछ लोग आते हैं साथ कैमरा और माइक लाते हैं
फ़ोटो खीच हमारी अखबार में छपाते हैं
हम लोगों की रोति शक्ले बेच बेच
वो बोहोत बड़े फोटोग्राफर बन जाते हैं
और हम साला मज़दूर
इन्ही सड़कों पर धुल उड़ाते रह जाते हैं
खैर , अगर हमारी बातों से दुःख लगा हो तो
माफ़ करियेगा हमे
क्या करें साहेब
किसी दूसरे गृह पर होते तो
ये तसल्ली तो हो जाती कि
दिल्ली अभी दूर है।

पोस्ट स्क्रिप्ट:
यहाँ मज़दूर को मरने की जल्दी यूँ भी है;
कि ज़िंदगी की कश्मकश में कफ़न महंगा ना हो जाए।

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